“यतोऽभ्युदयनिः श्रेयससिद्धि स धर्मः” 

अर्थात् 

जिससे ऐहिक और पारलौकिक उन्नति प्राप्त हो, वह धर्म है। 

~ महर्षि कणाद के अनुसार